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Friday, July 27, 2018

फ्रेडरिक बैटिंगने इंशुलिनचा शोध लावला

२७ जुलै १९२१
फ्रेडरिक बैटिंगने इंशुलिनचा शोध लावला

 इंशुलिन हे एक स्वादुपिंडाच्या बिटा पेशीपासुन तयार झालेले पेप्टाइड हार्मोन आहे. आणि हा शरीराचा मुख्य अॅनाबॉलिक संप्रेरक मानला जातो.
मधुमेह ( डायबेटिस ) या आजारात माणसाच्या शरीरातले स्वादुपिंड पुरेसे इन्शुलिन तयार करू शकत नाही; किंवा शरीरातील तयार झालेल्या इन्शुलिनला पेशींकडून पुरेसा प्रतिसाद मिळत नाही.. या दोन्ही प्रकारात पेशींमध्ये ग्लूकोज शोषण्याच्या क्रियेत अडथळा येतो.
यावर उपाय म्हणुन इंशुलिनचे इंजेक्शन दिले जाते.

मधूसूदनी (इंसुलिन) (रासायनिक सूत्र:C45H69O14N11S.3H2O) अग्न्याशय यानि पैंक्रियाज़ के अन्तःस्रावी भाग लैंगरहैन्स की द्विपिकाओं की बीटा कोशिकाओं से स्रावित होने वाला एक जन्तु हार्मोन[2] है। रासायनिक संरचना की दृष्टि से यह एक पेप्टाइड हार्मोन है जिसकी रचना ५१ अमीनो अम्ल से होती है। यह शरीर में ग्लूकोज़ के उपापचय को नियंत्रित करता है। पैंक्रियाज यानी अग्न्याशय एक मिश्रित ग्रन्थि है जो आमाशय के नीचे कुछ पीछे की ओर स्थित होती है। भोजन के कार्बोहइड्रेट अंश के पाचन के पश्चातग्लूकोज का निर्माण होता हैं। आंतो से अवशोषित होकर यह ग्लूकोज रक्त के माध्यम से शरीर के सभी भागों में पहुंचता है। शरीर की सभी सजीव कोशिकाओं में कोशिकीय श्वसन की क्रिया होती है जिसमें ग्लूकोज के विघटन से ऊर्जा उत्पन्न होती है जिसका जीवधारी विभिन्न कार्यों में प्रयोग करते हैं।[3] ग्लूकोज के विघटन से शरीर को कार्य करने, सोचने एवं अन्य कार्यों के लिए ऊर्जा प्राप्त होती है।
इंसुलिन के प्राथमिक संरचना की खोज ब्रिटिश आण्विक जीवशास्त्री फ्रेड्रिक सैंगर ने की थी। यह प्रथम प्रोटीन था जिसकी शृंखला ज्ञात हो पायी थी। इस कार्य के लिए उन्हें १९५८ में रासायनिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। अग्नाशय स्थित आइलैंड्स ऑफ लैंगरहैंड्स अग्न्याशय का केवल एक प्रतिशत भाग ही होता है।[4] एक सामान्य अग्न्याशय में एक लाख से अधिक आइलैंड्स होते हैं और प्रत्येक आइलैंड में ८०-१०० बीटा कोशिकाएं होती हैं। ये कोशिकाएं प्रति १० सैकेंड में २ मिलीग्राम प्रतिशत की दर से ब्लड ग्लूकोज को नापती रहती हैं। एक या डेढ मिनट में बीटा कोशिकाएं रक्त शर्करा स्तर को सामान्य बनाए रखने के लिए आवश्यक इंसुलिन की मात्रा उपलब्ध करा देती हैं। जब मधुमेह नही होती है तो रक्त-शर्करा के स्तर को अत्यधिक ऊपर उठाना लगभग असंभव रहता है। अतएव इंसुलिन की आपूर्ति लगभग कभी खत्म ही नही होती। इसके अलावा अग्न्याशय में एल्फा नामक कोशिकाएं भी होती हैं जो ग्लूकागॉन नामक तत्व निर्मित करती हैं। ग्लूकागॉन इंसुलिन के प्रभावों को संतुलित करके रक्त-शर्करा स्तर को सामान्य बनाए रखता है। अग्न्याशय की डेल्टा कोशिकाएं सोमाटोस्टेन नामक एक तत्व बनाती हैं जो इंसुलिन और ग्लूकागॉन के बीच संचार का कार्य करता है।
कृत्रिम इंसुलिन
बैंटिग और वेस्ट द्वारा इंसुलिन की खोज ने मानव इतिहास में मधुमेह पर विजय को अमर कर दिया है। तभी से शुद्ध, कम पीड़ादायी इंसुलिन निर्माण के प्रयास जारी हैं। सबसे पहले वोभाइन इंसुलिन बैलों के अग्नाशय से प्राप्त किया गया। फिर पोरसीन इंसुलिन सुअर के अग्नाशय से प्राप्त किया गया। अन्ततः वर्तमान में शुद्धतम मानव इंसुलिन उपलब्ध हुआ। बैलों और सुअरों को बड़ी मात्रा में मारकर इंसुलिन निर्माण का तरीका मानव इन्सुलीन बनाने में प्रयोग नहीं होता। इसे आनुवांशिक अभियांत्रिकी डी.एन.ए. रीकोम्बीनेट तकनीक का इस्तेमाल कर बनाते हैं।

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